रिपोर्ट: पवन जायसवाल
काशी के तुलसीघाट पर जीवंत हुई सदियों पुरानी ‘नाग नथैया’ लीला: उमड़ा जनसैलाब
वाराणसी। देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं में शुमार लक्खा मेलों में से एक विश्व प्रसिद्ध ‘नाग नथैया’ लीला का मंचन इस वर्ष भी तुलसीघाट पर अत्यंत धूमधाम और दिव्यता के साथ संपन्न हुआ। कार्तिक शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को आयोजित होने वाली यह लीला हर साल की तरह इस साल भी बहुत सुंदर रही, जिसे देखने के लिए गंगा तट पर भक्तों का विशाल जनसैलाब उमड़ पड़ा।गंगा बनी यमुना, तुलसीघाट बना गोकुलयह अद्भुत लीला करीब 450 वर्षों से भी अधिक पुरानी है, जिसका शुभारंभ श्रीरामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी ने किया था।







लीला के मंचन के दौरान पूरा तुलसीघाट मानो द्वापर युग के गोकुल में बदल गया। गंगा नदी कालिंदी (यमुना) का रूप धरकर इठलाती दिखी, जहां भगवान श्री कृष्ण ने भक्तों को अपने बाल स्वरूप के दर्शन दिए।कालिया नाग का मर्दनलीला के मुख्य आकर्षण में भगवान कृष्ण द्वारा विषैले कालिया नाग का मर्दन करना शामिल था। कथा के अनुसार, गेंद खेलते हुए बाल कृष्ण ने जब अपनी गेंद यमुना (गंगा) में फेंक दी, तो वे उसे लेने के लिए नदी में कूद पड़े। यहां उनका सामना कालिया नाग से हुआ।मंचन के दौरान, जैसे ही बाल कृष्ण का रूप धरे कलाकार लकड़ी के विशालकाय कालिया नाग पर सवार होकर उसके फन पर बंशी बजाते हुए जल से बाहर निकले, पूरा वातावरण ‘जय कन्हैया लाल की’ और ‘हर-हर महादेव’ के जयकारों से गूंज उठा। इस अलौकिक दृश्य को जिसने भी देखा, वह भक्ति भाव में डूब गया।महाराज बनारस के प्रतिनिधि रहे उपस्थितपरंपरा के अनुसार, इस ऐतिहासिक लीला को देखने के लिए काशी नरेश (महाराज बनारस) के प्रतिनिधि के रूप में कुंवर अनंत नारायण सिंह भी उपस्थित रहे। उन्होंने भगवान कृष्ण की आरती कर आशीर्वाद प्राप्त किया। लीला के सफल आयोजन में संकटमोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र और अन्य संयोजकों का महत्वपूर्ण योगदान रहा।इस भव्य आयोजन ने एक बार फिर काशी की प्राचीन और जीवंत परंपराओं को साकार कर दिया, जिसे देखने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु खिंचे चले आते हैं।











