ध्रुव-चरित्र का भागवत- कथा में विस्तारपूर्वक वर्णन

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रिपोर्ट विकास तिवारी

आचार्य और श्रोता हुए भावुक तथा रो पड़े
◆बच्चों में वीरता का भाव भरना चाहिए न कि राग-द्वेष का

◆कठोर परिश्रम से ही मिलती हैं उपलब्धियां

मिर्जापुर। नगर के तिवराने टोला स्थित डॉ भवदेव पाण्डेय शोध संस्थान में आयोजित श्रीमद्भागवत सप्ताह के अंतर्गत चल रही कथा में व्यासपीठ से जब आचार्य डॉ ब्रह्मानन्द शुक्ल ने राजा उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव की कथा का मार्मिक वर्णन किया तब वे ख़ुद तो भावुक होकर रोने लगे, साथ श्रोताओं की आंखों से भी अश्रुधारा बहने लगी।
डॉ शुक्ल ने गोद में बैठे राजा उत्तानपाद की बड़ी पत्नी सुनीति के पुत्र ध्रुव को द्वितीय पत्नी सुरुचि ने खींचकर गोद से नीचे उतार दिया और बालक ध्रुव ने देखा कि पिता कुछ बोल नहीं रहे तो दुःखी मन से ध्रुव मां सुनीति के पास आए। डॉक्टर शुक्ल ने कहा पुत्र का अधिकार है कि वह माता-पिता की गोद में बैठे लेकिन विमाता सुरुचि ने ध्रुव को डांटते हुए कहा कि यदि पिता की गोद में बैठना है तो मेरी कोख से तुम्हें जन्म लेना पड़ेगा।
अपमानित ध्रुव जब माँ के पास आए तो माँ ने ध्रुव का साहस बढ़ाते हुए कहा कि वन में जाओ और तपस्या करो। डॉक्टर शुक्ल ने कहा कि दरअसल माँ सुनीति पुत्र को साहसी और वीर बनाना चाहती थी। डॉक्टर शुक्ल ने उपस्थित माताओं से कहा कि बच्चों में कभी वैर-भाव नहीं पैदा करना चाहिए, इससे आगे चलकर बदला लेने की प्रवृत्ति जागृत होती है। उन्होंने ऐतिहासिक महापुरुष शिवाजी का उद्धरण देते हुए कहा कि उनकी माँ जीजाबाई की वजह से वे साहसी बने और इतिहास के पन्नों में अमर हो गए।
डॉक्टर शुक्ल ने कहा कि जब ध्रुव नगर से बाहर निकलने लगे तब उनके गुरु देवर्षि नारद ने पूछा कि कहां जा रहे हो? ध्रुव ने उत्तर दिया कि वे सिंहासन पर बैठने जा रहे हैं। पांच महीने की कठोर साधना से देवमण्डल में हलचल मच गई और खुद नारायण को ध्रुव के पास आना पड़ा।
कथा के दौरान आचार्य शुक्ल ने भगवान का मानसिक जप करते रहने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि इससे नकारात्मक का शमन होता है। डॉक्टर शुक्ल धार्मिक कथा में लोक जीवन के उत्थान का भी सरल उपाय बता रहे हैं, जो आमजनता के लिए अत्यंत लाभप्रद है।

प्रारंभ में डॉक्टर शुक्ल का स्वागत वृजदेव पाण्डेय, सलिल पाण्डेय, प्रोफेसर शिशिर पाण्डेय एवं यथार्थ पाण्डेय ने किया।

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