◆प्रयागराज के संगम में : पहली डुबकी◆एक ओर महाकुंभ तो दूसरी ओर ‘असंतोष का महाकुंभ◆भूमि आवंटन में काशी के एक युवा बाबा का बल्ले-बल्ले, औरों के छूट रहे पसीने◆कारपोरेट जगत और ऑफिसरों की है चांदी- मिर्जापुर। पौष पूर्णिमा से प्रयागराज जनपद में लगने वाले महाकुंभ मेले का समय सन्निकट आ गया है। मात्र एक सप्ताह का अंतराल है लेकिन महाकुंभ मेला फिलहाल संतों में भेदभाव के चलते ‘असंतोष के कुंभ’ से भर गया है। यदि इस ‘असंतोष के कुंभ’ को खाली नहीं किया गया और यह ‘कुंभ’ मेले के दौरान फूटा तो अव्यवस्था हो सकती है।◆’अंधा बांटे रेवड़ी चीन्ह-चीन्ह कर देई’ : महाकुंभ मेले में भूमि आवंटन के सन्दर्भ में उक्त मुहावरा लागू होते दिखाई पड़ रहा हैं। किसी सन्त-महात्मा को पूरी आजादी दे दी गई है कि वे जितना पग भूमि नाप लें, उतने क्षेत्रफल में अपना डेरा जमा लें जबकि अशक्त कहे जाने वाले साधु-संतों को खदेड़ कर भगा दिया जा रहा है।◆बनारस के महात्मा का बल्ले-बल्ले : काशी के एक अत्यंत युवा बाबा को लगभग 20 एकड़ जमीन दे दी गई है, वह भी संगम से मात्र एक किमी दूरी पर तो देश-विदेश में ख्याति अर्जित करने तथा अद्भुत प्रवचन करने वाले एक अति आदरणीय महात्मा को संगम से 14 किमी दूर भूमि दी गई है, वह भी मात्र दो एकड़ क्षेत्रफल है। जबकि वर्तमान समय में भारत के एकमात्र वे ऐसे महात्मा है जिनका प्रवचन सुनने विदेश तक से लोग आते हैं।◆काशी के बाबा से परेशां हैं ‘बाबा’ के अधिकारी : न जाने क्या गणित है कि पूरे मेला क्षेत्र में यह खबर फैल गई है कि काशी वाले बाबा ‘यूपी गर्वनमेंट के बाबा’ के अत्यंत करीब हैं। वे अधिकारियों के सिर पर ऐसे सवार हैं कि प्रशासनिक अधिकारी उनके आगे बिल्कुल बौने साबित हो रहे हैं। लिहाज़ा साधु-संतों के मामले में उन्हीं की सुनवाई हो रही है। प्रशासनिक अधिकारी भीतर ही भीतर कुढ़ तो रहे हैं लेकिन बोल नहीं पा रहे हैं।◆कुछ बाबा लौट भी रहे हैं : ऐसे साधु-संत जिन्हें 15×30 फीट का स्थान दिया जा रहा है, वे अपना बोरिया बिस्तर लेकर लौट जा रहे हैं। एक तो संगम से 15 किमी दूर फाफामऊ क्षेत्र में भूमि दी गई और वह भी ऐसी भूमि कि महात्मागण अपने श्रद्धालुओं को भी न टिका पाएंगे, ऐसी स्थिति में पंजाब से आए एक महात्मा अपना बोरिया बिस्तर लेकर लौट गए। यदि ऐसा ही रहा तो संभव है कि फाफामऊ का इलाका अंत तक खाली ही रह जाए।◆अफसरों, संस्थाओं एवं कारपोरेट जगत प्रभावी : मेले में कमाई के लिए अनेक संस्थाएं सक्रिय हैं। भूमिगत सेप्टिक टैंक अत्यंत महंगे मूल्य पर लिया जा रहा है। कारपोरेट जगत हावी है। अफसरों के कॉटेज महल की तरह लग रहे हैं। ऐसी स्थिति में मेला जो साधु-संतों के बल पर लगता है, वह अब कार्पोरेट एवं ऑफिसरों का मेला हो गया है।(मेले को सुचारू बनाने में निम्नांकित फोन पर सुझाव दे सकते हैं