जीवन के सबसे अनमोल पल बचपन। जो करते थे उसका पस्तावा नहीं था,पल मे झगड़ा पल मे प्यार , दोस्तों से कोई मलाल नहीं था।
रिपोर्ट विकास तिवारी
न रूठे न रूठने वालों की झंझट थी, लड़ाई कितनी भी कर लो , छड़ में खेल तुरंत शुरू हो जाती थी।गोल बनाकर बगीचे में घुस जाते थे, पीठ लगाकर दोस्तों को पेड़ पर चढ़ाते थे।माली पर निगाहें सभी दोस्तों की रहती थी, जबतक दोस्त सही सलामत पेड़ से नहीं उतर जाता था, हमारी आंखें खुली रहती थी, दिल घबराता था ।जब कोई दोस्त गिरकर लगडाता था ।हम भी अपने पैर बांध लगड़ाते थे। चोट की एहसास, दोस्त को नहीं देना चाहते थे,पैर बांध खुद लगड़ाते थे। मां की फटकार पर झूठ बोल जाते थे, दोस्तों का इल्ज़ाम अपने सर पे ले आते थे।क्या वफादारी का वो बचपन मिशाल था , खुद से ज्यादा दोस्तों पर विश्वास था ।कपट छल हम नहीं जानते थे , दोस्त रोता था तो हम भी रोते थे,वजह जानने की कोशिश कभी नहीं करते थे। दोस्त हस दे, तो हम किलकारी मारके हंसते थे, पागल हैं ये बच्चे , लोग बोलते थे।दोस्ति हमारी कहा छुटती थी , नींद में भी हम दोस्तों के ख्वाब देखते थे।काश ये हो जाता वो बचपन की दोस्ती सारी उम्र लग जाता। । अरूण कुमार पाण्डेय लेखक,कवि , संवाददाता