संविधान व कानून को बदलने की कौन सी आवश्यकता ? — अशोक पांडेय

नए भारतीय कानून पर अधिवक्ता चिंतित

रिपोर्ट विकास तिवारी

संविधान व कानून को बदलने की कौन सी आवश्यकता ? — अशोक पांडे

 

मीरजापुर। संपूर्ण भारतवर्ष में भारतीय संविधान द्वारा निर्मित तीन प्रमुख शास्त्र जिनमें भारतीय दंड संहिता 1860, भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता 1860 , और साक्ष्य अधिनियम को मौजूदा सरकार द्वारा पूरी तरह से आमूल चूल परिवर्तन करके उनकी विभिन्न धाराओं में इस प्रकार परिवर्तन कर दिया गया है कि न्यायाधीश से लेकर वरिष्ठ अधिवक्ता तक को जिनकी जुबां पर कानून की धाराएं रटी होती थी।

परन्तु अब उनको उनकी एबीसीडी की पढ़ाई न्याय की पढ़नी पड़ेगी। पूर्व में भारतीय दंड संहिता 1860 को भारतीय न्याय संहिता 2023 में, भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता 1860 को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 में, व भारतीय साक्ष्य अधिनियम को भी विभिन्न धाराओं के तहत परिवर्तित कर दिया गया है। कानून के जानकारों का मानना है कि भारतीय संविधान और मौजूदा कानून प्रकिया शास्त्र इनमें किसी भी प्रकार की परिवर्तन की कोई आवश्यकता नहीं थी। इस संदर्भ में कचहरी स्थित वरिष्ठ अधिवक्ता एवं पूर्व अध्यक्ष डिस्ट्रिक्ट बार एसोसिएशन मिर्जापुर अशोक पांडेय ने बातचीत के दौरान कहा कि सरकार ने जिस प्रकार से इन धाराओं में परिवर्तित करके प्रस्तुत किया है और जो जुलाई 2024 से लागू हो रही है, उसके बाद अधिवक्ताओं न्यायाधीशों साथ ही साथ जो पक्षकारों को भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। क्योंकि वर्षो से चली आ रही धाराएं अधिवक्ता व न्यायाधीशों के जुबान पर रहती थी । जिसके तहत उनकी संपूर्ण प्रक्रिया उनको विदित थी , जानकारी थी। अब उन्हें कानून की एबीसीडी कानून की पढ़नी पड़ेगी , और विभिन्न बदले हुए धाराओं के साथ एक माथापच्ची का प्रक्रिया प्रारंभ हो गया है। सरकार को चाहिए कि इस पर पुनः विचार करें और पुरानी संहिता को लागू करें।

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