*राष्ट्रीय धरोहर के रूप में संजोकर रखी हुई महात्मा गांधी द्वारा लिखित 17 चिट्ठियों की करेंगे नीलामी- प्रभात दुबे*
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*चन्दौली:* ‘भाई रामनारायण दुबे-आप का पोस्टकार्ड मिला। पुस्तक पढ़ने की कोशिश करूंगा। आप क्या करते हैं? प्राकृतिक चिकित्सा का ज्ञान कहां लिया ? पुस्तक में जो लिखा है, वह अनुभव ज्ञान कि पुस्तकों से लिया हुआ ?” यह है महात्मा गांधी का पत्र जो उन्होंने 29 मई 1946 को जिले के भोजपुर गांव निवासी रामनारायण दुबे को भेजा था। फिलहाल रामनारायण जी तो इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन उनके पुत्र ओमप्रकाश दुबे ने ऐसे दो पत्र बतौर धरोहर सहेज कर रखे हैं। जनपद में कम ही लोग जानते हैं कि रामनारायण से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का काफी लगाव था। दोनों के बीच बराबर पत्र व्यवहार होता रहता। दरअसल, रामनारायण दुबे पेशे से तो शिक्षक थे किंतु उनकी दिलचस्पी प्राकृतिक चिकित्सा में भी थी। एक बार दुबे जी लकवा ग्रस्त हो गये। प्राकृतिक चिकित्सा के जरिए वह कुछ ही दिनों में बिल्कुल स्वस्थ हो गये। इसके बाद उन्होंने प्राकृतिक चिकित्सा के बारे में गहन अध्ययन किया और उस पर एक पुस्तक लिखी और जिसकी एक प्रति महात्मा गांधी को भेज दी। बस, यहीं से पत्र के जरिए शुरू हो गया दोनों के बीच बातचीत का सिलसिला। प्राकृतिक चिकित्सा पर गांधी जी का भी अटूट विश्वास था। महात्मा गांधी ने उनसे कई बार इलाज भी करवाया। यही नहीं बापू ने उन्हें साबरमती आश्रम बुलाया। रामनारायण जी प्राकृतिक चिकित्सा के संबंध में उनकी हर जिज्ञासा शांत करने का प्रयास करते। एक बार ओमप्रकाश दुबे भी पिता के साथ साबरमती पहुंचे। वह बताते हैं कि पिताजी के साथ जब वहां पहुंचे तो गांधी जी के साथ उस समय मीरा बहन भी मौजूद थीं। कई महापुरुषों का किया सफल इलाजभोजपुर गांव के स्वर्गीय रामनारायण दूबे मूलत: आजमगढ़ के रहने वाले थे। 1940 के दशक में वाराणसी आए और नागरी प्रचारिणी सभा और हरश्चदि कॉलेज के संस्थापक के संपर्क में आए। सेंट्रल हिंदू स्कूल कामाख्या में शक्षिक के पद पर कार्यरत थे। उन्होंने1942 में रामाकांत रजीला स्टेट (चित्रकूट) के राजा का इलाज कर ख्याति हासिल की थी। वर्ष 1943 में इंडियन प्रेस के मालिक धूनी बाबू का इलाज किया। 1945 में महात्मा गांधी के गुरु महात्मा भगवानदीन और अंग्रेजी राज्य के लेखक पंडित सुंदरलाल को दमे की बीमारी से छुटकारा दिलाया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी प्राकृतिक उपचार में ही विश्वास रखते थे उनके निजी वैद्य स्वर्गीय राम नारायण दुबे हुआ करते थे जो वाराणसी जनपद के चौबेपुर में स्थित प्राकृतिक आयोग आश्रम के सदस्य थे और लोगों का प्राकृतिक उपचार किया करते थे। उन्होंने प्राकृतिक उपचार पर किए गए इलाज पर कई किताबें लिखी जो स्वयं गांधी जी को पढ़ने के लिए भेजा करते थे। महात्मा गांधी इस पर पत्र के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया भी देते थे। इस तरह सैकड़ों चिट्ठियां महात्मा गांधी और शिमला बेस्ट की राजकुमारी अमृता कौर ओपी नैयर की पत्नी सुशीला नैयर साहित्यकार जैनेंद्र कुमार द्वारा महात्मा गांधी के गुरु भगवान दीन की बीमारियों के विषय में चिट्ठी भेजकर अवगत कराया। इस तरह सैकड़ों चिट्ठियां रामनारायण दुबे के घर एतिहासिक स्वरूप में रखी हुई हैं। रामनारायण के पुत्र ओम प्रकाश दुबे वह भी प्राकृतिक उपचार में बड़ा ही विश्वास रखते थे यहां तक कि कक्षा 10 पास करके सरकारी विद्यालय अध्यापक की नौकरी करते महीनों स्नान तक नहीं करते थे सूर्य की रोशनी और वायु से ही स्नान कर लिया करते थे शरीर पर कहीं भी मैल नहीं जमता था। अब उन्हीं का पौत्र जो इस संबंध में एसडीएम डीएम और कमिश्नर तक इन सभी चिट्ठियों का जिक्र किया और महात्मा गांधी जी से संबंधित संग्रहालय में रखने का आग्रह भी किया लेकिन अब तक प्रशासन के तरफ से कोई भी प्रतिक्रिया नहीं हुई। वही महात्मा गांधी जी के पुण्य तिथि से पूर्व प्रभात कुमार दुबे ने पत्रकार बंधुओं को बताया कि अब हमे मजबूरन उक्त चिट्टियों को नीलामी के लिए मजबूर है। जहां एक तरफ प्रशासन से लेकर शासन तक सभी कार्यालयों में सत्यमेव जयते के साथ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी का फोटो रहता है और वर्तमान सरकार भी धर्म से लेकर राष्ट्रीय धरोहरों को विदेशों से अपने देश में लाने का कार्य कर रही है वही इस तरह के धरोहरों की उपेक्षा करना जिले के अधिकारियों के समक्ष सवाल बनकर खड़ा है।
प्रभात कुमार दुबे वर्तमान समय चंदौली जनपद के मुगलसराय थाना अंतर्गत भोजपुर गांव में किराएदारी कर किसी तरह अपनी पत्नी सीमा दुबे पुत्री आंचल दुवे श्रेया दुबे और पुत्र अंश दुबे के साथ जीविका पार्जन कर रहा है। जिनके पास महात्मा गांधी जी द्वारा लिखी गई 17 चिट्ठियों को राष्ट्रीय धरोहर के रूप में अपने पास संजोकर रखा हुआ है।