विश्वविद्यालय में नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की 127 वीं जयंती को “पराक्रम दिवस” के रूप में मनाया गया—

विश्वविद्यालय में नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की 127 वीं जयंती को “पराक्रम दिवस” के रूप में मनाया गया—

 

रोहित सेठ

 

जय हिन्द” का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया –कुलपति प्रो बिहारी लाल शर्मा ।

 

नेता जी सुभाष चन्द्र बोस (23 जनवरी 1897 – 18 अगस्त 1945) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी तथा सबसे बड़े नेता थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिए, उन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फ़ौज का गठन किया था। उनके द्वारा दिया गया “जय हिन्द” का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया है। “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा” का नारा भी उनका था जो उस समय अत्यधिक प्रचलन में आया।भारतवासी उन्हें नेता जी के नाम से सम्बोधित करते हैं।उन्होंने ‘जय हिंद’ शब्द गढ़ा। उनके करिश्मा और शक्तिशाली व्यक्तित्व ने कई लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में प्रेरित किया और भारतीयों को प्रेरित करते रहे।उनके व्यक्तित्व में भाव, अभाव एवं प्रभाव का सुन्दर समन्वय था जिसके दम पर उन्हें सर्वश्रेष्ठ संगठन कर्ता एवं नेतृत्व कर्ता के रूप में जाना जाता है।

उक्त विचार सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के कुलपति प्रो बिहारी लाल शर्मा ने शिक्षा शास्त्र विभाग द्वारा आयोजित नेता जी सुभाष चंद्र बोस के 127 वीं जन्म जयंती को “पराक्रम दिवस” के रूप मनाये जाने के दौरान बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किया।

 

नेता जी नारी सशक्तिकरण के पक्षधर थे–

कुलपति प्रो बिहारी लाल शर्मा ने कहा कि नेता जी नारी सशक्तीकरण के प्रबल पक्षधर थे, कारण कहते थे कि नारी संतान पालन करने के रूप में मानव जाति के निर्माण में प्रथम है पर परिवार में संस्कार तथा घर को मंदिर बनाना तथा हमारी सांस्कृतिक परम्परा को बनाये रखने में केवल नारी का ही योगदान है।मां अन्नपूर्णा के रूप में भोजन, प्रसाद बनाना तथा अपने परिवार को खिलाना उसका प्रमुख रूप देवी मां जगत जननी के रूप में स्थापित करती है।

 

“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता—

 

“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता” के सिद्धांत पर नारी पूजन करने से देवता का वास होता है।नेता जी ने सदैव नारी सशक्तिकरण के पक्षधर बनकर सम्पूर्ण जीवन को जोड़े रखा।

 

उनका व्यक्तित्व पूरे समाज के लिए प्रेरणा स्रोत एवं अनुकरणीय है–

शिक्षाशास्त्र के विभागाध्यक्ष एवं संकाय अध्यक्ष प्रो हीरक कांत चक्रवर्ती ने कहा कि नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने अध्ययन के दौरान अपनी मेधा से आईसीएस की परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त कर अव्वल उत्तीर्ण हुये।जीवन में लक्ष्य और मनोयोग के साथ अपने जीवन का निर्माण कर हम सभी के लिए विशिष्ट और अनुकरणीय हैं।उनका व्यक्तित्व पूरे समाज के लिए प्रेरणा स्रोत तथा वर्तमान पीढ़ी के लिए अमल करने योग्य है।

 

शिक्षा शास्त्र विभाग की वरिष्ठ अध्यापक डॉ विशाखा शुक्ला ने कहा कि नेता जी सुभाष चंद्र बोस भारतीयों के दुख और परेशानी, शोषण को सहन नहीं करते थे, वे सदैव प्रतिकार हेतु तत्पर रहते थे।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में-

वैदिक, पौराणिक मंगलाचरण एवं नेता जी सुभाष चंद्र बोस के चित्र पर मंच पर आसीन अतिथियों ने माल्यार्पण कर नमन किया।

अन्य उपस्थित ज़न–

उपर्युक्त प्रमुख वक्ताओं के अतिरिक्त विभागीय छात्रों ने भी अपने-अपने विचार रखे, शिक्षा शास्त्र प्रथम एवं द्वितीय वर्ष की छात्र-छात्राओं ने पूरे उत्साह के साथ प्रतिभाग किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में प्रोफ़ेसर जितेन्द्र कुमार,डॉक्टर पुष्पा यादव, डॉक्टर एसपी सोनकर, मनु मिश्रा, श्री जयप्रकाश,डॉक्टर विमल त्रिपाठी, श्री गोविंद त्रिपाठी ,श्री संजय मिश्रा, एवं श्री मनीष सिंह, उपस्थित रहे। अंत में धन्यवाद ज्ञापन डॉक्टर श्री कृष्ण कुमार ने किया।

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