रोहित सेठ VARANASI
काशी का अभिप्राय है सदैव प्रकाशमान रहने और सदैव प्रकाशित रखने वाला ज्योतिपुंज-राष्ट्रपति
ज्ञान का प्रकाश प्रसारित करना भी काशी की एक प्रमुख पहचान रही है-द्रौपदी मुर्मू
विद्यापीठ, असहयोग आंदोलन से उत्पन्न संस्था के रूप में हमारे महान स्वाधीनता संग्राम का जीवंत प्रतीक है
महात्मा गांधी काशीविद्यापीठ के विद्यार्थी स्वाधीनता संग्राम के हमारे राष्ट्रीय आदर्शों के ध्वज वाहक हैं-राष्ट्रपति
काशी, निरंतर अस्तित्व में बनी रहने वाली विश्व की प्राचीनतम नगरी है-द्रौपदी मुर्मू
जी-20 समिट के माध्यम से भारत ने अपनी संस्कृति एवं वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा से पूरी दुनिया में अपना परचम लहराया-राज्यपाल
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ अपनी स्थापना काल से ही मातृ भाषा के माध्यम से शिक्षा प्रदान करने हेतु प्रतिबद्ध रहा है-आनंदीबेन पटेल
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति द्वारा उनके इस संकल्प को और अधिक बल प्राप्त हुआ है
वाराणसी। महात्मा गांधी काशीविद्यापीठ के 45वें दीक्षांत समारोह में सोमवार को मुख्य अतिथि के रूप में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 15 मेधावियों को मेडल प्रदान किया। राष्ट्रपति के हाथों मेडल प्राप्त करते ही छात्र-छात्राओं के चेहरे के खुशी से खिल उठे।
दीक्षांत समारोह में छात्र- छात्राओं को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति द्रोपति मुर्मू ने उपाधियां और पदक प्राप्त करने वाले सभी विद्यार्थियों सहित उनकी सफलता में योगदान देने वाले आचार्य-गण और अभिभावक-गण को भी बधाई दी। उन्होंने कहा कि बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में आना अपने आप में सौभाग्य की बात है। काशी का अभिप्राय है सदैव प्रकाशमान रहने और सदैव प्रकाशित रखने वाला ज्योतिपुंज। पिछले महीने काशी में देव दीपावली का पर्व भव्यता से मनाया गया। इस पर्व को 72 देशों के प्रतिनिधियों ने हमारे देशवासियों के साथ यहां मनाया। ज्ञान का प्रकाश प्रसारित करना भी काशी की एक प्रमुख पहचान रही है। विद्यापीठ के लिए काशी सर्वथा उपयुक्त स्थान है। उन्होंने महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के विद्यार्थियो से कहा कि इस शिक्षण संस्थान की अत्यंत गौरवशाली विरासत का एक प्रमाण यह है कि दो-दो भारत रत्न इस विद्यापीठ से जुड़े रहे हैं। भारत रत्न डॉक्टर भगवान दास काशी विद्यापीठ के प्रथम कुलपति थे और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री इस विद्यापीठ के पहले बैच के छात्र थे। वस्तुतः काशी विद्यापीठ से वर्ष 1925 में शास्त्री की उपाधि मिलने के बाद से ही उनके नाम के साथ ‘शास्त्री’ उपनाम जुड़ गया था। काशी विद्यापीठ के पूर्व छात्र के रूप में इस संस्थान की प्रसिद्धि को बढ़ाते हुए, शास्त्री जी ने जन- सेवक के रूप में सरलता, निष्ठा, त्याग और दृढ़ता के उच्चतम आदर्श प्रस्तुत किए थे। राष्ट्रपति ने विद्यापीठ के विद्यार्थियों से अपेक्षा की, कि वे शास्त्री जी के जीवन मूल्यों को अपने आचरण में ढालें। हिन्दी माध्यम में उच्च स्तरीय शिक्षा प्रदान करने के लिए बाबू शिव प्रसाद गुप्त जी ने काशी विद्यापीठ की अपनी परिकल्पना की चर्चा महात्मा गांधी से की थी और गांधीजी ने उसे सहर्ष अनुमोदन प्रदान किया था। देश की स्वाधीनता के 26 वर्ष पूर्व, गांधीजी की परिकल्पना के अनुसार आत्म-निर्भरता तथा स्वराज के लक्ष्यों के साथ, इस विद्यापीठ की यात्रा शुरू हुई थी। 10 फरवरी 1921 को इस विद्यापीठ का उद्घाटन करते हुए महात्मा गांधी ने कहा था कि “जितने विद्यालय सरकार के असर में हैं, उनसे हमें विद्या नहीं लेनी चाहिए…. हम उस झंडे के नीचे नहीं रह सकते जिसको सलाम करने के लिए हमारे लड़के मजबूर किए गए थे। यदि हमारे विद्यालय खुलेंगे तो विद्या अपने आप पवित्र हो जाएगी। असहयोग को बढ़ाने के लिए ही इस विद्यापीठ की स्थापना की गई है। असहयोग ही हमारे लिए एकमात्र शास्त्र है …”। उस उद्घाटन समारोह में उपस्थित शास्त्री जी तथा उनके मित्रों ने गांधीजी का भाषण सुनने के बाद काशी विद्यापीठ में अध्ययन करने का निर्णय लिया। इस प्रकार यह विद्यापीठ, असहयोग आंदोलन से उत्पन्न संस्था के रूप में हमारे महान
स्वाधीनता संग्राम का जीवंत प्रतीक है। ‘महात्मा गांधी काशी- विद्यापीठ’ के सभी विद्यार्थीगण, स्वाधीनता संग्राम के हमारे राष्ट्रीय आदर्शों के ध्वज वाहक हैं। इस विद्यापीठ के प्रथम प्रबंधन बोर्ड के सदस्यों में महात्मा गांधी, लाला लाजपत राय, जमनालाल बजाज, जवाहरलाल नेहरू, बाबू शिव प्रसाद गुप्त, आचार्य नरेंद्र देव और पुरुषोत्तम दास टंडन जैसे इतिहास-निर्माता शामिल थे। यहां के असाधारण अध्यापकों की सूची में आचार्य नरेंद्र देव, डॉक्टर संपूर्णानन्द और बाबू श्रीप्रकाश जैसे मूर्धन्य विद्वानों के नाम सदैव याद रखे जाएंगे। ब्रिटिश शासन की सहायता और नियंत्रण से दूर रहते हुए भारतीयों द्वारा पूर्णतः भारतीय संसाधनों से निर्मित, काशी विद्यापीठ का नामकरण ‘महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ’ करने के पीछे हमारे स्वाधीनता संग्राम के आदर्शों के प्रति सम्मान व्यक्त करने की भावना निहित है। उन आदर्शों पर चलना तथा अमृत-काल के दौरान देश की प्रगति में प्रभावी योगदान देना यहां के विद्यार्थियों द्वारा विद्यापीठ के राष्ट्र-निर्माता संस्थापकों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
राष्ट्रपति द्रोपति मुर्मू ने कहा कि यह एक प्रबल लोक मान्यता है कि काशी, निरंतर अस्तित्व में बनी रहने वाली विश्व की प्राचीनतम नगरी है। बाबा विश्वनाथ और मां गंगा के आशीर्वाद से युक्त पुण्य- नगरी काशी सब को आकर्षित करती रही है और करती रहेगी।स्मरण है कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी को अपने लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के रूप में चुना था तो उन्होंने भी यही कहा था कि मुझे मां गंगा ने बुलाया है। जिस तरह मां गंगा भारतीय संस्कृति की जीवन धारा हैं तथा भारतीय ज्ञान, अध्यात्म और आस्था की संवाहिका हैं उसी तरह काशी नगरी भारतीय संस्कृति की कालातीत धरोहर है। काशी में स्थित विद्यापीठ में विद्यार्जन कर रहे हैं यह आप सब का परम सौभाग्य है और इसके लिए उन्होंने लोगों को बधाई दी। राष्ट्रपति ने कहा कि यह विद्या-नगरी प्राचीन काल से ही भारतीय ज्ञान परंपरा का केंद्र रही है और वर्तमान काल में भी यहां के संस्थान आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के संवर्धन में अपना योगदान कर रहे हैं। उन्होने कहा कि लगभग 1300 वर्ष पहले, जगद्गुरु आदि शंकराचार्य जी के अद्वैत दर्शन को व्यापक लोक स्वीकृति तभी प्राप्त हुई जब काशी में आकर उन्होंने यहां के विद्वानों के साथ शास्त्रार्थ करके अद्वैत दर्शन की प्रामाणिकता को सिद्ध किया। आज से लगभग 250 साल पहले यहां ‘काशी विद्वत् परिषद्’ की स्थापना की गयी थी। वह परिषद निरंतर सक्रिय रही है। संस्कृत भाषा में रचित किसी भी शास्त्र के विषय में इस परिषद का निर्णय सर्वमान्य होता है। ऐसे प्रामाणिक ज्ञान केंद्र की परंपरा के अनुरूप, इस विद्यापीठ के आचार्यों और विद्यार्थियों को भी अपने संस्थान के गौरव को निरंतर समृद्ध करते रहना है। हमारी परंपरा में नैतिकता पर आधारित अर्थ एवं काम पुरुषार्थों को सिद्ध करने तथा धर्माचरण एवं मोक्ष प्राप्ति को जीवन का ध्येय माना गया है। विद्या से ही धर्म और मोक्ष के पुरुषार्थ सिद्ध होते हैं। आपके विद्यापीठ का ध्येय वाक्य है विद्ययाऽमृतमश्नुते। यह ध्येय वाक्य ईशा-वास्य उपनिषद से लिया गया है। ईश उपनिषद में यह बोध कराया गया है कि व्यावहारिक ज्ञान और आध्यात्मिक ज्ञान एक दूसरे के संपूरक हैं। व्यावहारिक ज्ञान से अर्थ, धर्म और कामनाओं की सिद्धि होती है। विद्या पर आधारित आध्यात्मिक ज्ञान से अमरता यानी मोक्ष की प्राप्ति होती है। शिक्षा की समग्र अवधारणा में विद्यार्थियों को व्यावहारिक जीवन के लिए सक्षम बनाया जाता है और साथ ही धर्म एवं अध्यात्म के संस्कार भी डाले जाते हैं। विद्यापीठ के कुलगीत में चिर-नवीन और चिर-पुराण के संगम का संदेश दिया गया है। नैतिकता, आदर्श, धर्म और मोक्ष जैसे भारतीय आदर्श नूतन और पुरातन के विभाजन से ऊपर हैं। चूंकि वे आदर्श सदा से विद्यमान रहे हैं, इसलिए उन्हें चिर-पुराण कहा जा सकता है। चिर-नवीन की परिधि में विज्ञान तथा व्यावहारिक ज्ञान की आधुनिकतम धाराएं समाहित हैं। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों को चिर-पुराण और चिर-नवीन के समन्वय को अपनी शिक्षा, आचरण और जीवन में उतारना है। तब आप राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुसार, भारतीय परम्पराओं से जुड़े रह कर इक्कीसवीं सदी के आधुनिक विश्व में सफलताएं अर्जित करेंगे। उन्होंने कहा कि मुझे यह जानकर बहुत प्रसन्नता हुई है कि आज स्वर्ण पदक प्राप्त करने वाले कुल विद्यार्थियों में 78 प्रतिशत संख्या छात्राओं की है, स्नातकों में लगभग 57 प्रतिशत छात्राएं हैं तथा स्नातकोत्तर उपाधियां प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों में लगभग 68 प्रतिशत बेटियां हैं। मंच पर आकर पदक प्राप्त करने वाले 15 विद्यार्थियों में 11 छात्राएं हैं। उच्च शिक्षण संस्थानों में बेटियों के बेहतर प्रदर्शन में विकसित भारत और बेहतर समाज की झलक दिखाई देती है। उन्होने विश्वास व्यक्त करते हुए कहा कि है वर्ष 2047 तक भारत को विकसित देश के रूप में स्थापित करने के राष्ट्रीय संकल्प को सिद्ध करने में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के विद्यार्थियों और आचार्यों का महत्वपूर्ण योगदान रहेगा।
इससे पूर्व कुलाधिपति एवं उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने राष्ट्रपति का स्वागत करते हुए कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रेरणा से इस आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक धरती पर राष्ट्ररत्न बाबू शिवप्रसाद गुप्त द्वारा एक सौ दो वर्ष पूर्व आध्यात्म विद्या की नींव पर प्रतिष्ठित भारतीय शिष्टता के संस्कार और विकास में सहायता करने के उद्देश्य से स्थापित इस गौरवशाली एवं ऐतिहासिक विद्यापीठ में राष्ट्रपति की गरिमामयी उपस्थिति सभी के लिये गर्व की बात है। उन्होंने विशेष रूप से जोर देते हुए कहा कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु का जीवन, संघर्ष, समृद्ध सेवा और अनुकरणीय सफलता प्रत्येक भारतीय को प्रेरित करती है। विशेष रूप से गरीबों, हाशिये पर पड़े हुए दबे-कुचले, वंचितों, कमजोर वर्गों तथा महिलाओं के लिये वे आशा की किरण हैं, सबकी प्रेरणास्रोत हैं। राष्ट्रपति के रूप में देश के विकास में अपनी विशिष्ट भूमिका का निर्वहन कर रही है। महिलाओं के सशक्तीकरण हेतु ‘नारी शक्ति वंदन बिल’ जारी होना आपके कार्यकाल की महत्वपूर्ण उपलब्धि में गिना जायेगा। राष्ट्रपति द्रोपति मुर्मू देश की महिलाओं के सशक्तीकरण का स्पष्ट उदाहरण हैं। राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने कहा कि बाबा श्री काशीविश्वनाथ के आशीर्वाद से काशी का सम्मान आज नित नई-नई ऊंचाइयों को छू रही है। जी-20 समिट के माध्यम से भारत ने अपनी संस्कृति एवं वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा से पूरी दुनिया में अपना परचम लहराया।काशी की सेवा काशी का स्वाद, काशी की संस्कृति और काशी का संगीत जी-20 के लिये जितने मेहमान आये, वे इसे समेटते हुए अपने साथ लेकर गये हैं। जी-20 की अद्भुत सफलता बाबा विश्वनाथ जी के आशीर्वाद से ही सम्भव हुई। उन्होंने कहा कि यहां के लोगों ने काशी के विकास की जो कल्पना की थी, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में विकास और विरासत का वो सपना अब धीरे-धीरे साकार हो रहा है।काशी को तो देश की सांस्कृतिक राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। काशी का मतलब सात वार, नौ त्यौहार, ये सात वार और नौ त्यौहार वाली काशी में कोई भी उत्सव गीत, संगीत के बिना सम्भव ही नहीं हो सकता, चाहे घर की बैठकी हो या बजड़े पर बूढ़वा मंगल, भरत मिलाप हो या नाग-नथैया, संकटमोचन का संगीत समारोह हो या देव-दीपावली, यहां पर सब कुछ सुरों में समाया हुआ है।
राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने दीक्षान्त समारोह में स्नातक, स्नातकोत्तर एवं पीएचडी उपाधि प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों को बधाई के साथ ही विभिन्न विषयों व पाठ्यक्रमों में सर्वोच्च अंक प्राप्त करने वाले मेधावी विद्यार्थियों को उनकी विशिष्ट उपलब्धि के लिये विशेष शुभकामनाएं देते हुए कहा कि जीवन के इस महत्वपूर्ण दिन पर अपनी कड़ी मेहनत को अपने लक्ष्यों और उद्देश्यों की प्राप्ति में
बदलते हुए देखकर निश्चित रूप से खुशी का अनुभव कर रहे होंगे। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का मानना था कि विश्वविद्यालय की शिक्षा का उद्देश्य ऐसे सच्चे जन सेवकों को तैयार करना है, जो देश के लिए जिएं। उन्होंने अहिंसा, करूणा, नैतिकता और निःस्वार्थ सेवा के आदर्शों में लोगों की आस्था बढ़ाई। बापू ने भारतीय समाज, राजनीति और अध्यात्म को बहुत गहराई के साथ भारत की भाव-भूमि के साथ जोड़ा है। उन्होने प्रसन्नता जताते हुए कहा कि महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ अपनी स्थापना काल से ही मातृ भाषा के माध्यम से शिक्षा प्रदान करने हेतु प्रतिबद्ध रहा है और नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति द्वारा उनके इस संकल्प को और अधिक बल प्राप्त हुआ है। क्योंकि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मातृ भाषा पर बहुत जोर दिया गया है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अन्तर्गत मूल विषय, वैकल्पिक विषय और कौशल विकास के साथ नैतिकता तथा भारतीय ज्ञान परम्परा परम्परा की शिक्षा भी समावेशित की गई है। इससे सामाजिक संरचना के नये प्रतिमान स्थापित होंगे। स्वामी विवेकानन्द भी ऐसी शिक्षा की व्याख्या करते थे, जिसके द्वारा मस्तिष्क का विकास हो, प्रज्ञा का विस्तार हो तथा चरित्र का निर्माण हो और विद्यार्थी अपने पैरों पर खड़ा होकर स्वावलम्बी बन सके। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि विद्यापीठ द्वारा सत्र 2022-23 से स्नातकोत्तर स्तर पर नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्राविधानों के अनुसार के निर्मित पाठ्यक्रम लागू कर दिया गया है। स्नातक तथा स्नातकोत्तर दोनों ही स्तरों पर च्वाइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम आधारित पाठ्यक्रम लागू करना इसी का परिणाम है। विश्व स्तरीय व समाज उपयोगी शोध कार्यों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से विद्यापीठ द्वारा नवीन विषयों पर कुल 24 शोध परियोजनाएं तथा चार उच्च अनुशीलन केन्द्रों की स्थापना की गई है। इसके साथ ही विश्वविद्यालय परिसर व विभिन्न सम्बद्ध महाविद्यालयों में कौशल विकास पाठ्यक्रमों का संचालन तथा विद्यार्थियों को इंटर्नशिप के माध्यम से उद्योगों के साथ जोड़ने का भी प्रयत्न किया जा रहा है। इंटर्नशिप के लिये हरिजन सेवक संघ, नई दिल्ली, विनोवा भावे आश्रम, शाहजहांपुर, सेवाधाम आश्रम, उज्जैन और साबरमती आश्रम, अहमदाबाद आदि के साथ वर्ष दो हजार बाईस में MOU किये गये हैं। इस वर्ष विद्यार्थियों द्वारा इन संस्थानों भ्रमण करके अनेक प्रकार के मानवतावादी दृष्टिकोण को आत्मसात किया गया है। इसी प्रकार वर्ष 2021-22 में विभिन्न राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ कुल 17एमoओ०यू० किये गये थे। विद्यापीठ द्वारा विगत वर्ष में कैम्पस प्लेसमेंट के लिये अनेक अभिनव प्रयास किये हैं। विद्यार्थियों को कौशल प्रशिक्षण, रोजगार के प्रति जागरूकता कार्यक्रम आदि के माध्यम से विश्वविद्यालय परिसर में रोजगार उन्मुखता व व्यावसायिकता हेतु एक वातावरण निर्मित हुआ है, जिससे विद्यार्थियों में रोजगार प्राप्त करने की उत्सुकता बढ़ी है। इसी का परिणाम है कि परम्परागत स्नातक व स्नातकोत्तर विद्यार्थियों को भी कैम्पस चयन के माध्यम से रोजगार के अवसर प्राप्त हो रहे हैं। युवा के रूप में आप देश की अर्थव्यवस्था और विकास के चालक बनने जा रहे हैं। लेकिन इससे भी अधिक हमारे युवाओं को दुनिया के कई देशों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए बुलाया जायेगा, जहां आबादी बूढ़ी हो रही होगी। इसलिये अपने युवाओं को शिक्षा, कौशल और मूल्यों के माध्यम से उत्पादक मानव संसाधन के रूप में परिवर्तित करना है। उन्होने जोर देते हुए कहा कि नव प्रवर्तन के क्षेत्र में भारत का योगदान सदैव उल्लेखनीय रहा है। एक समय था जब हम जीवन के अनेक क्षेत्रों में
अग्रणी थे। भारतीय गणितज्ञ भास्कराचार्य को मध्यकालीन भारत का सबसे महान गणितज्ञ माना जाता है। उनका जन्म 12वीं सदी में हुआ था और वे महाराष्ट्र में रहते थे। वही ही थे, जिन्होंने सबसे पहले पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा करने में लगने वाले समय की सटीक गणना की थी। फिर भारतीयों ने दुनिया को शून्य की अवधारणा दी। भारत ने दुनिया को योग और आयुर्वेद दिया। काशी विद्यापीठ द्वारा योग को बढ़ावा देने के लिये ‘योग महोत्सव’ का आयोजन किया गया। इसके साथ ही अपने सामाजिक दायित्वों के निर्वहन हेतु आस-पास के समुदायों में स्वस्थ जीवन के लिये योग और प्राकृतिक चिकित्सा के प्रति जागरूक करने के लिये मुफ्त चिकित्सा और प्रशिक्षण सत्रों का आयोजन किया। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय ने महात्मा गांधी के सामाजिक न्याय और गैर भेदभाव के सिद्धान्तों को अपनाते हुए
शिक्षा में लैंगिक समानता और तीसरे लिंग को शामिल करने के लिये एक ट्रांसजेंडर सेल’ की भी स्थापना की।यह पहला मौका है जब किसी राज्य विश्वविद्यालय द्वारा ट्रांसजेंडर के लिये इस प्रकार का अभिनव प्रयास किया गया हो। उन्होंने बताया कि जगह-जगह
चौराहों पर, होटलों आदि के आस-पास में भिक्षा मांगते बच्चों को देखा होगा। इसके लिए उन्होंने इच्छा जताते हुए कहा कि विद्यापीठ भिक्षावृत्त में संलिप्त बच्चों को चिन्हित कर उन्हें शिक्षा से जोड़े। भिक्षावृत्ति भी सभ्य समाज को कंलकित करता है। उन्होंने सभी का आह्वान करते हुए कहा कि सभी लोग भिक्षावृत्ति में लगे बच्चों को इस पेशे से विमुक्त करने तथा उन्हें शिक्षा के माध्यम से समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिये आगे आयें। प्रदेश के विश्वविद्यालयों को भी इस कार्य में आगे आना चाहिए। उन्होंने बताया कि गत 2 व 3 दिसम्बर को राजभवन में स्वयं सेवी संस्था ‘उम्मीद’ के सहयोग से भिक्षावृत्ति छोड़ चुके पांच सौ बच्चों के प्रोत्साहन हेतु ‘भिक्षा से शिक्षा की ओर’ कार्यक्रम के अन्तर्गत दो दिवसीय खेल महोत्सव का आयोजन हुआ, जिसमें इन बच्चों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।पूरा विश्व हमारी ओर बड़ी आशा भरी दृष्टि से देख रहा है। एक नये भारत का निर्माण हो रहा है और सभी को इसका भागीदार बनना होगा। हमें चुनौतियों का सामना करने और उन्हें अवसरों में बदलने के लिए तैयार रहने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि हमें ज्ञानवान समाज बनने के लिये आगे बढ़ना होगा। हमारे छात्रों को सभी ट्रेडों में निपुण होना चाहिए। सीखने में विविधता और बहुआयामी प्रयोगों, शोधों और कौशलों से अवगत होना आवश्यक है। इसके साथ ही विश्वविद्यालयों के प्रत्येक परिसर को अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों का केन्द्र होना चाहिए, ताकि हमारे छात्र नवीनतम प्रौद्योगिकियों के साथ जुड़ सकें। उन्होंने विद्यार्थियों से अपील करते हुए कहा कि उनके सुख, समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य का जीवन देखना चाहते हैं, बल्कि आप समाज को कुछ लौटाएं। कुछ अच्छे उद्यमी बनें और दूसरों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करें। कई इच्छुक छात्रों को संसाधनों,
अवसरों, सुविधाओं और मार्गदर्शन के अभाव में अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ती है। समाज के कमजोर वर्गों के प्रति आपकी बड़ी जिम्मेदारी है।
इस अवसर पर अतुल माहेश्वरी स्मृति स्वर्ण पदक एमए पत्रकारिता एवं जनसंचार की छात्रा आयुषी तिवारी को, सीता राम जिंदल फाउंडेशन स्वर्ण पदक एमसीए के छात्र विनय तिवारी व सुनंदा यति, प्रो. सीपी गोयल स्मृति स्वर्ण पदक एमएसडब्ल्यू की अंजली चौरसिया, स्नातकोत्तर कक्षा में सर्वोच्च अंक के लिए एमटीटीएम की छात्रा मनीषा मौर्या को डॉ. विभूति नारायण सिंह स्मृति स्वर्ण पदक दिया गया। जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती स्वर्ण पदक एमए संस्कृत की छात्रा ट्विंकल पाठक को, डॉ. शंभू नाथ सिंह स्मृति स्वर्ण पदक एमए हिंदी के छात्र अभिषेक मौर्या को, राम जनम सिंह स्मृति स्वर्ण पदक एमए इतिहास के छात्र प्रीतम प्रसाद को, प्रो. दूधनाथ चतुर्वेदी स्मृति स्वर्ण पदक संसृता सिंह और डॉ. शरद बंसल स्मृति स्वर्ण पदक एमएफए के छात्र धीरज कुमार नीरज को दिया गया। स्नातक पाठ्यक्रम में सर्वोच्च अंक के लिए सगुन सिंह को डॉ. भगवान दास स्मृति स्वर्ण पदक, बीए संस्कृत में सर्वोच्च अंक प्राप्त करने के लिए प्रो. अमरनाथ पांडेय स्मृति स्वर्ण पदक शिखा को और कृष्ण वासुदेव स्मृति स्वर्ण पदक एलएलबी में संजना उपाध्याय को दिया गया।
दीक्षांत समारोह में उत्तर प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री योगेंद्र उपाध्याय, उच्च शिक्षा राज्य मंत्री रजनी तिवारी, कुलपति सहित अन्य लोक प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।
इससे पूर्व राष्ट्रपति का लाल बहादुर शास्त्री अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट पर राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, उत्तर प्रदेश के श्रम एवं सेवायोजन मंत्री अनिल राजभर, स्टांप एवं न्यायालय पंजीयन शुल्क राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रविंद्र जायसवाल, आयुष एवं खाद्य सुरक्षा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) दयाशंकर मिश्र ‘दयालु’, सांसद वी पी सरोज, जिला पंचायत अध्यक्ष पूनम मौर्या, महापौर अशोक तिवारी, एमएलसी/ज़िलाध्यक्ष हंसराज विश्वकर्मा, ज़िलाधिकारी एस .राजलिंगम, पुलिस आयुक्त अशोक मुथा जैन सहित ज़िले के आला अधिकारियों ने अगवानी की।